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2019 में कब है इंदिरा एकादशी और कथा-व्रत तिथि व पूजा मूहुर्त

Submitted by Shanidham on 19 Sep, 2019

एकादशी तिथि का हिंदू धर्म में आस्था रखने वालों के लिये खास महत्व है। प्रत्येक चंद्र मास में दो एकादशियां आती है। इस तरह साल भर में 24 एकादशियां आती है मलमास या कहें अधिक मास की भी दो एकादशियों को मिलाकर इनकी संख्या 26 हो जाती है। प्रत्येक एकादशी का अपना अलग महत्व होता है। हर एकादशी की एक कथा भी होती है। एकादशियों को असल में मोक्षदायिनी माना जाता है। लेकिन कुछ एकादशियां बहुत ही खास मानी जाती है। इन्हीं खास एकादशियों में से एक है इंदिरा एकादशी।
 इंदिरा एकादशी क्या है
आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को इंदिरा एकादशी कहा जाता है। इस एकादशी की खास बात यह है कि यह पितृपक्ष में आती है जिसकारण इसका महत्व बहुत अधिक हो जाता है। मान्यता है कि यदि कोई पूर्वज़ जाने-अंजाने हुए अपने पाप कर्मों के कारण यमराज के पास अपने कर्मों का दंड भोग रहे हैं तो इस एकादशी पर विधिपूर्वक व्रत कर इसके पुण्य को उनके नाम पर दान कर दिया जाये तो उन्हें मोक्ष मिल जाता है और मृत्युपर्यंत व्रती भी बैकुण्ठ में निवास करता है।
इंदिरा एकादशी व्रत कथा
भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति से भाव विह्वल होकर अर्जुन ने कहा- "हे प्रभु! अब आप कृपा कर आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी की कथा को कहिए। इस एकादशी का क्या नाम है तथा इसका व्रत करने से कौन-सा फल मिलता है। कृपा कर विधानपूर्वक कहिए।"
भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा- "हे धनुर्धर! आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम इन्दिरा है। इस एकादशी का व्रत करने से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। नरक में गए हुए पितरों का उद्धार हो जाता है। हे अर्जुन! इस एकादशी की कथा के श्रवण मात्र से ही मनुष्य को अनंत फल की प्राप्ति होती है। मैं यह कथा सुनाता हूँ, तुम ध्यानपूर्वक श्रवण करो-
सतयुग में महिष्मती नाम की नगरी में इंद्रसेन नाम का एक प्रतापी राजा राज्य करता था। वह पुत्र, पौत्र, धन-धान्य आदि से पूर्ण था। उसके शत्रु सदैव उससे भयभीत रहते थे। एक दिन राजा अपनी राज्य सभा में सुखपूर्वक बैठा था कि महर्षि नारद वहां आए। नारदजी को देखकर राजा आसन से उठा, प्रणाम करके उन्हें आदर सहित आसन दिया। तब महर्षि नारद ने कहा- 'हे राजन! आपके राज्य में सब कुशल से तो हैं? मैं आपकी धर्मपरायणता देखकर अत्यंत प्रसन्न हूँ।'
राजा ने कहा- 'हे देवऋषि! आपकी कृपा से मेरे राज्य में सब -कुशलपूर्वक हैं तथा आपकी कृपा से मेरे सभी यज्ञ कर्म आदि सफल हो गए हैं। हे महर्षि अब आप कृपा कर यह बताएं कि आपका यहां आगमन किस प्रयोजन से हुआ है? मैं आपकी क्या सेवा करूं?'
महर्षि नारद ने कहा- 'हे नृपोत्तम! मुझे एक महान विस्मय हो रहा है कि एक बार जब मैं ब्रह्मलोक से यमलोक गया था, तब मैंने यमराज की सभा में तुम्हारे पिता को बैठे देखा। तुम्हारे पिता महान ज्ञानी, दानी तथा धर्मात्मा थे, मगर एकादशी के व्रत के बिगड़ जाने के कारण यह यमलोक को गए हैं। तुम्हारे पिता ने तुम्हारे लिए एक संदेश भेजा है।'
राजा ने उत्सुकता से पूछा- 'क्या संदेश है महर्षि? कृपा कर यथाशीघ्र कहें।'
राजन तुम्हारे पिता ने कहा है- 'महर्षि! आप मेरे पुत्र इंद्रसेन, जो कि महिष्मती नगरी का राजा है, के पास जाकर एक संदेश देने की कृपा करें कि मेरे किसी पूर्व जन्म के बुरे कर्म के कारण ही मुझे यह लोक मिला है। यदि मेरा पुत्र आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की इन्दिरा एकादशी का व्रत करे और उस व्रत के फल को मुझे दे दे तो मेरी मुक्ति हो जाए। मैं भी इस लोक से छूटकर स्वर्गलोक में वास करूं।'
इंद्रसेन को अपने पिता के यमलोक में पड़े होने की बात सुनकर महान दुख हुआ और उसने नारद से कहा- 'हे नारदजी! यह तो बड़े दुख का समाचार है कि मेरे पिता यमलोक में पड़े हैं। मैं उनकी मुक्ति का उपाय अवश्य करूंगा। आप मुझे इन्दिरा एकादशी व्रत का विधान बताने की कृपा करें।'
नारदजी ने कहा- 'हे राजन! आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की दशमी के दिन प्रातःकाल श्रद्धापूर्वक स्नान करना चाहिए। इसके उपरांत दोपहर को भी स्नान करना चाहिए। उस समय जल से निकलकर श्रद्धापूर्वक पितरों का श्राद्ध करें और उस दिन एक समय भोजन करें और रात्रि को पृथ्वी पर शयन करें। इसके दूसरे दिन अर्थात एकादशी के दिन नित्यकर्मों से निवृत्त होकर स्नानादि के उपरांत भक्तिपूर्वक व्रत को धारण करें और इस प्रकार संकल्प करें- 'मैं आज निराहार रहूँगा और सभी भोगों का त्याग कर दूंगा। इसके उपरांत अगले दिन भोजन करूंगा। हे ईश्वर! आप मेरी रक्षा करने वाले हैं। आप मेरे उपवास को सम्पूर्ण कराइए।'
इस प्रकार आचरण करके दोपहर को सालिगरामजी की प्रतिमा को स्थापित करें और ब्राह्मण को बुलाकर भोजन कराएं तथा दक्षिणा दें।
भोजन का कुछ हिस्सा गाय को अवश्य दें और भगवान विष्णु का धूप, नैवेद्य आदि से पूजन करें तथा रात्रि को जागरण करें। तदुपरांत द्वादशी के दिन मौन रहकर बंधु-बांधवों सहित भोजन करें। हे राजन! यह इन्दिरा एकादशी के व्रत की विधि है। यदि तुम आलस्य त्यागकर इस एकादशी के व्रत को करोगे तो तुम्हारे पिता अवश्य ही स्वर्ग के अधिकारी बन जाएंगे।'
नारदजी राजा को सब विधान समझाकर आलोप हो गए। राजा ने इन्दिरा एकादशी के आने पर उसका विधानपूर्वक्र व्रत किया। बंधु-बांधवो सहित इस व्रत के करने से आकाश से पुष्पों की वर्षा हुई और राजा के पिता यमलोक से रथ पर चढ़कर स्वर्ग को चले गए।
इस एकादशी के प्रभाव से राजा इंद्रसेन भी इहलोक में सुख भोगकर अंत में स्वर्गलोक को गया।
भगवान श्रीकृष्ण ने कहा- हे सखा! यह मैंने तुम्हारे सामने इन्दिरा एकादशी के माहात्म्य का वर्णन किया है। इस कथा के पढ़ने व सुनने मात्र से ही सभी पापों का शमन हो जाता है और अंत में मनुष्य स्वर्गलोक का अधिकारी बनता है।"
कथा-सार
मनुष्य जो भी प्रण करे, उसे चाहिए कि वह उसको तन-मन-धन से पूरा करें। किसी भी कार्य का प्रण करके उसे तोड़ना नहीं चाहिए।
इंदिरा एकादशी व्रत व पूजा विधि
कथा के अनुसार महर्षि नारद ने व्रत की विधि बताते हुए कहा था कि आश्विन माह की कृष्ण पक्ष की दशमी के दिन प्रात:काल श्रद्धापूर्वक स्नानादि से निवृत होकर फिर दोपहर के समय नदी आदि में जाकर स्नान करें। श्रद्धा पूर्वक अपने पितरों का श्राद्ध करें और दिन में केवल एक बार ही भोजन करें। एकादशी के दिन प्रात:काल में उठकर नित्य क्रियाओं से निवृत होकर स्नानादि करें व्रत के नियमों को श्रद्धा पूर्वक ग्रहण करें साथ ही संकल्प ले कि “मैं सार भोगों को त्याग कर निराहार एकादशी का व्रत करुंगा, हे प्रभु मैं आपकी शरण हूं आप मेरी रक्षा करें।” इस प्रकार नियमपूर्वक शालिग्राम की मूर्ति के आगे विधिपूर्वक श्राद्ध करके पात्र ब्राह्मण को फलाहार का भोजन करवायें व दक्षिणादि से प्रसन्न करें। धूप, दीप, गंध, पुष्प, नैवेद्य आदि से भगवान ऋषिकेश की पूजा करें। रात्रि में प्रभु का जागरण करें व द्वादशी के दिन प्रात:काल भगवान की पूजा करके ब्राह्मण को भोजन करवाकर सपरिवार मौन होकर भोजन करें। लेकिन हमारी सलाह है कि आप व्रत व पूजा करने की विधि विद्वान ज्योतिषाचार्यों से अच्छे से जान लें।

इंदिरा एकादशी की  तिथि व पूजा मूहुर्त
इंदिरा एकादशी 2019 - व्रत तिथि व पूजा मूहुर्त
इंदिरा एकादशी व्रत तिथि - 25 सितंबर 2019
द्वादशी को पारण का समय - 06:15 से 08:38 बजे तक (26 सितंबर 2019)
एकादशी तिथि आरंभ - 16:42 बजे (24 सितंबर 2019)
एकादशी तिथि समाप्त - 14:09 बजे (25 सितंबर 2019)