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HartalikaTeej 2019 हरतालिका तीज व्रत के नियम

Submitted by Shanidham on 31 Aug, 2019

हिन्दू धर्म में हरतालिका तीज व्रत की बहुत मान्यता है. बिहार सहित झारखंड, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान के कई इलाकों में किये जाने वाला यह व्रत हर साल भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को किया जाता है. हिंदू मान्यताओं में तीज व्रत का विशेष महत्व है यह व्रत मुख्यतौर पर शादीशुदा महिलाएं करती हैं और अपने पति के लिए हरतालिका तीज व्रत हिंदू धर्म में मनाये जाने वाला एक प्रमुख व्रत है। भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की तृतीया को हरतालिका तीज मनाई जाती है। दरअसल भाद्रपद की शुक्ल तृतीया को हस्त नक्षत्र में भगवान शिव और माता पार्वती के पूजन का विशेष महत्व है। हरतालिका तीज व्रत कुमारी और सौभाग्यवती स्त्रियां करती हैं। विधवा महिलाएं भी इस व्रत को कर सकती हैं। हरतालिका तीज व्रत निराहार और निर्जला किया जाता है। मान्यता है कि इस व्रत को सबसे पहले माता पार्वती ने भगवान शंकर को पति के रूप में पाने के लिए किया था। हरतालिका तीज व्रत करने से महिलाओं को सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
HartalikaTeej 2019: हिंदू धर्म में हरतालिका तीज (Hartalika Teej) के व्रत का काफी महत्व है. विवाहित महिलाएं इस दिन पति की लंबी आयु और सौभाग्य की कामना के साथ पूरे दिन निर्जला व्रत रखती हैं और अगले दिन सूर्योदय के साथ स्नान और नित्यकर्म निपटाकर पूजा पाठ कर व्रत खोलती हैं. इस व्रत के दौरान भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा अर्चना की जाती है. यह व्रत भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि के दिन रखा जाता है. लेकिन इस बार इस व्रत की तारीख को लेकर कुछ भी स्पष्ट नहीं हो पा रहा है. कुछ जानकारों के मुताबिक़, इस बार हरितालिका व्रत 1 सितम्बर को है तो वहीं कुछ का कहना है कि यह 2 सितम्बर को है. आइए जानते हैं कि क्यों इस बार हरतालिका व्रत की तारीख को लेकर है उहापोह और किस तरह रखें इस बार यह व्रत.
दरअसल, हर बार यह व्रत भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि के दिन रखा जाता है जोकि गणेश चतुर्थी से एक दिन पहले पड़ती है. लेकिन इस साल के पंचांग के मुताबिक, तृतीया तिथि का क्षय हो रहा है. तो इस आधार पर अगर पंचांग की गणना की जाए तो इस बार जब 1 सितम्बर को सूर्योदय के समय द्वितीया तिथि लगेगी लेकिन यह 08 बजकर 27 मिनट पर समाप्त भी हो जाएगी. जानकारों के अनुसार, इसके बाद तृतीया लग जाएगी जोकि अगले दिन यानी कि 2 सितंबर को सूर्योदय से पहले ही सुबह 04 बजकर 57 मिनट खत्म भी हो जाएगी. इस तरह तृतीया तिथि को मान्य नहीं माना जाएगा क्योंकि इस तिथि में सूर्योदय हुआ ही नहीं. इसीलिए इस बार व्रत की तिथि को लेकर उहापोह बनी हुई है कि जब तृतीया नहीं है तो आखिर व्रत कब रखा जाए.
इस बार हरतालिका की तिथि को लेकर ज्योतिषियों में भी दो मत हैं. कुछ का कहना है कि चूंकि 1 सितंबर को दिनभर तृतीया रहेगी तो इस हिसाब से हरतालिका का व्रत 1 सितंबर को रखा जाना चाहिए. इसके साथ ही उनका कहना यह भी है कि हस्त नक्षत्र के दौरान ही हरतालिका का व्रत रखा जाता है और 1 सितम्बर को ही हस्त नक्षत्र भी लग रहा है. वहीं, कुछ ज्योतिष शास्त्रियों का मानना है कि तीज का व्रत इस बार 2 सितम्बर को रखा जाना चाहिए क्योंकि अगर ग्रहलाघव सिद्धांत पर आधारित पंचांग की सहायता ली जाये तो 2 सितंबर को सूर्योदय के बाद सुबह 8 बजकर 58 मिनट तक तृतीया तिथि रहेगी और इसके बाद चतुर्थी लग जाएगी. सीधे शब्दों में कहें तो सूर्योदय के बाद तृतीया रहेगी और पूरे दिन तक चतुर्थी. जानकारों के अनुसार, तृतीया और चतुर्थी का यह योग काफी शुभ माना जाता है. 
हरतालिका तीज व्रत के नियम
●  हरतालिका तीज व्रत में जल ग्रहण नहीं किया जाता है। व्रत के बाद अगले दिन जल ग्रहण करने का विधान है।
●  हरतालिका तीज व्रत करने पर इसे छोड़ा नहीं जाता है। प्रत्येक वर्ष इस व्रत को विधि-विधान से करना चाहिए।
●  हरतालिका तीज व्रत के दिन रात्रि जागरण किया जाता है। रात में भजन-कीर्तन करना चाहिए।
●  हर तालिका तीज व्रत कुंवारी कन्या, सौभाग्यवती स्त्रियां करती हैं। शास्त्रों में विधवा महिलाओं को भी यह व्रत रखने की आज्ञा है।
हरतालिका तीज व्रत पूजा विधि
हरतालिका तीज पर माता पार्वती और भगवान शंकर की विधि-विधान से पूजा की जाती है। इस व्रत की पूजा विधि इस प्रकार है..
●  हरतालिका तीज प्रदोषकाल में किया जाता है। सूर्यास्त के बाद के तीन मुहूर्त को प्रदोषकाल कहा जाता है। यह दिन और रात के मिलन का समय होता है।
●  हरतालिका पूजन के लिए भगवान शिव, माता पार्वती और भगवान गणेश की बालू रेत व काली मिट्टी की प्रतिमा हाथों से बनाएं।
●  पूजा स्थल को फूलों से सजाकर एक चौकी रखें और उस चौकी पर केले के पत्ते रखकर भगवान शंकर, माता पार्वती और भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापित करें।
●  इसके बाद देवताओं का आह्वान करते हुए भगवान शिव, माता पार्वती और भगवान गणेश का षोडशोपचार पूजन करें।
●  सुहाग की पिटारी में सुहाग की सारी वस्तु रखकर माता पार्वती को चढ़ाना इस व्रत की मुख्य परंपरा है।
●  इसमें शिव जी को धोती और अंगोछा चढ़ाया जाता है। यह सुहाग सामग्री सास के चरण स्पर्श करने के बाद ब्राह्मणी और ब्राह्मण को दान देना चाहिए।
●  इस प्रकार पूजन के बाद कथा सुनें और रात्रि जागरण करें। आरती के बाद सुबह माता पार्वती को सिंदूर चढ़ाएं व ककड़ी-हलवे का भोग लगाकर व्रत खोलें।
हरतालिका तीज व्रत का पौराणिक महत्व
हरतालिका तीज व्रत भगवान शिव और माता पार्वती के पुनर्मिलन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। एक पौराणिक कथा के अनुसार माता पार्वती ने भगवान भोलेनाथ को पति के रूप में पाने के लिए कठोर तप किया था। हिमालय पर गंगा नदी के तट पर माता पार्वती ने भूखे-प्यासे रहकर तपस्या की। माता पार्वती की यह स्थिति देखकप उनके पिता हिमालय बेहद दुखी हुए। एक दिन महर्षि नारद भगवान विष्णु की ओर से पार्वती जी के विवाह का प्रस्ताव लेकर आए लेकिन जब माता पार्वती को इस बात का पता चला तो, वे विलाप करने लगी। एक सखी के पूछने पर उन्होंने बताया कि, वे भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तप कर रही हैं। इसके बाद अपनी सखी की सलाह पर माता पार्वती वन में चली गई और भगवान शिव की आराधना में लीन हो गई। इस दौरान भाद्रपद में शुक्ल पक्ष की तृतीया के दिन हस्त नक्षत्र में माता पार्वती ने रेत से शिवलिंग का निर्माण किया और भोलेनाथ की आराधना में मग्न होकर रात्रि जागरण किया। माता पार्वती के कठोर तप को देखकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए और पार्वती जी की इच्छानुसार उन्हें पत्नी के रूप में स्वीकार किया।
तभी से अच्छे पति की कामना और पति की दीर्घायु के लिए कुंवारी कन्या और सौभाग्यवती स्त्रियां हरतालिका तीज का व्रत रखती हैं और भगवान शिव व माता पार्वती की पूजा-अर्चना कर आशीर्वाद प्राप्त करती हैं।